मुद्रण संस्कृति और आधुनिक दुनिया
परिचय :-
· जब छपाई नहीं थी तो हस्तलेख नही प्रचलित था और पांडुलिपियों के माध्यम से विचारों को लिखित में सरक्षित किया जाता था।
· मुद्रण तकनीक के आने के बाद से मानव जीवन में क्रांतिकारी परिवर्तन आया और यह परिवर्तन सामाजिक जीवन, धार्मिक जीवन तथा अन्य क्षेत्रों में स्पष्ट हुआ।
शुरूआती छपी किताबें :-
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मुद्रण की सबसे पहली तकनीक चीन, जापान और कोरिया में विकसित हुई। यह छपाई हाथ से होती थी।
· लगभग 594 ई. से चीन में स्याही लगे लकड़ी के ब्लॉक या तख्ती पर कागज को रगड़कर किताबें छापी जाने लगीं थीं।
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चीनी किताबें एकार्डियन शैली में लिखी जाती थीं।।
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मुद्रित सामग्री का सबसे बड़ा उत्पादक चीनी राजतंत्र था।
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किताब लिखने वालों को खुशनसीव कहा जाता था जिसका अर्थ होता है सुलेख करने वाला।
· चीन में किताबें छापने का कार्य सरकार के जिम्मे था छपी हुई किताबें सिविल सेवा की परीक्षा के लिए बड़ी संख्या में छपवाई जाती थी।
· धीरे धीरे सत्रहवीं सदी में विद्वान और अधिकारियों के एकाधिकार से निकल कर मुद्रित सामग्री कारोबारियों और व्यापारियों के लिए भी उपयोगी होने लगी।
· समय बीतने के साथ सामान्य जन भी किताबें लिखने और पढ़ने लगे। अमीर वर्गों की महिलाएं भी इसमें सम्मिलित होने लगीं।
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उन्नीसवीं सदी के आते आते मशीनों से मुद्रण होने लगा जिसपर पश्चिमी प्रभाव दिखाई पड़ने लगा।
जापान में मुद्रण :-
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जापान में छपाई तकनीक चीनी बौद्ध प्रचारकों के द्वारा 768-770 ई0 के आसपास आई।
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जापान की सबसे पुरानी छपी हुई किताब है ‘‘डायमंड सूत्र” इसमें लकड़ी पर लेखन के साथ साथ चित्र भी उकेरे गए थे।
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टोक्यो का पुराना नाम एदो था। जो कि एक शहरी इलाका था। जहां पुस्तकालय होते थे।
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त्रिपीटिका कोरियाना वुडब्लॉक्स मुद्रण के रूप में कोरियाई बौद्ध धर्म ग्रंथ है।
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कितागावा उतामारो एदो शहर में जन्में थे जिन्होंने एक नवीन चित्रकला शैली विकसित की जिसे उकियो (तैरती दुनिया) के नाम से जाना गया।
यूरोप में मुद्रण का आना :-
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ग्यारहवीं सदी में रेशम मार्ग से पहली बार कागज यूरोप पहुंचा।
· 1295 ई. में इटली के वेनिस नगर का निवासी मार्कोपोलो चीन आया और लकड़ी पर लेखन और चित्रण की कला जिसे वुडब्लॉक वाली छपाई कहा जाता है है सीख कर वापस इटली लौटा फिर इटली के रास्ते पूरे यूरोप में यह कला प्रचलित हो गई।
· लकड़ी के अलावा चमड़े पर भी लिखा जाता था जिसे चर्म पत्र या वेलम कहते हैं। यह वेलम कुलीन वर्गां तथा भिक्षुसंघों के लिए होता था।
· जैसे - जैसे पुस्तकों का व्यापार बढ़ा किताब विक्रेताओं ने भी कातिब अर्थात सुलेखन करने वालों को नौकरी पर रखना शुरू कर दिया।
· जब मांग और ज्यादा बढ़ने लगी तो कातिबों द्वारा बनाई जाने वाली पांडुलिपियां मंहगी और श्रमसाध्य हो गई जिससे वुडब्लॉक छपाई ही लोकप्रिय हुई। किन्तु बढ़ती मांग के आगे वुडब्लॉक भी धीमे पड़ते दिखाई देने लगे और तरूरत और तेजी से छपाई करने वाली तकनीक की महसूस होने लगी।
गुटेनबर्ग का प्रिटिंग प्रेस -
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1430 के दशक में स्ट्रैसबर्ग के योहान गुटेनबर्ग ने छपाई मशीन बना ही डाली।
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1448 में गुटेनबर्ग ने पहली किताब बाइबिल छापी।
· तत्कालीन समय के सबसे तेज गति की छपाई करते हुए गुटेनबर्ग की मशीन ने तीन साल में 180 प्रतिलिपियां छाप डालीं।
· 1450 से 1550 के बीच यूरोप में अनेक देशों में छापेखाने लग गए। अब हाथ की छपाई की जगह मशीनी मुद्रण ने अपना स्थान बना लिया था।
· प्लाटेन : लेटरप्रेस में प्रयुक्त एक लकड़ी अथवा इस्पात का बोर्ड जिसे कागज की पीछे दबाकर टाइप की छाप ली जाती थी।
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यूरोप की पहली छपी किताब गुटेनबर्ग की बाइबिल ही थी।
मुद्रण क्रांति और उसका असर :-
· जब किताबों की प्रतिलिपियां बनाना मशीनी छापेखाना से सस्ता और तेज हुआ तो पाठकों की संख्या और किताबों की मांग में भी इजाफा हुआ।
नया पाठक वर्ग -
· किताबों की पहुंच पाठकों तक आसान होने से अब धार्मिक किताबों का वाचन कर श्रवण की परम्परा अर्थात गाथागीत के स्वर मंद होने लगे।
· लेकिन किताबों के पढ़ने के लिए लोगों का भी पढ़ा लिखा होना जरूरी था तभी वे किताबों को पढ़ सकते थे।
· तो निरक्षरों के लिए लोकगीत और लोककथाएं छपवाई गईं और इनको साक्षर लोग शराबखानों , चोपालों इत्यादि में गाकर सुनाते। इस प्रकार मौखिक और मुद्रित संस्कृति आपस में घुलमिल गई।
धार्मिक विवाद और प्रिंट का डर -
· छापेखाने खुलने से अभिव्यक्ति की आजादी को नया स्वरूप मिला जो लोग बोलकर अपनी बात नहीं पहुंचा सकते थे वे अब लिखकर प्रशंसा और आलोचना दोनों व्यक्त करने लगे।
· मुद्रण संस्कृति का प्रभाव धार्मिक क्षेत्र में भी देखा जाने लगा। धर्म सुधारक मार्टिन लूथर ने अपने पंचानवे थीसिसों के माध्यम से चर्च को शास्त्रार्थ की चुनौती दी।
· लूथर के तर्कों से चर्च में विभाजन हो गया और प्रोटेस्टेंट धर्मसुधार की शुरूवात हुई।
· ‘‘मुद्रण ईश्वर की महान देन है, सबसे बड़ा तोहफा है।’’ यह लूथर ने कहा
· एक कैथोलिक धर्मसुधारक इरैस्मस कैथलिक धर्म की ज्यादतियों पर तो मुखर थे किन्तु लूथर की तरह प्रिटिंग का समर्थन नहीं करते थे बल्कि किताबों को भिनभिनाती मक्खी की संज्ञा दी।
मुद्रण और प्रतिरोध -
· मुद्रित किताबों को पढ़कर अब लोग धर्म की व्याख्या अपनी सोच के अनुरूप करने लगे थे। इससे रोमन कैथेलिक चर्च नाराज हो गया और उसने धर्म विरोधियों को सुधारने के लिए इन्क्वीजीशन (धर्म अदालत) नामक संस्था का गठन किया।
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इन्क्वीजीशन के माध्यम से प्रतिबंधित किताबों की सूची जारी की गई।
पढ़ने का जूनून :-
· 17 वीं और 18 वीं सदी में अलग अलग इसाई सम्प्रदायों के चर्चां ने स्कूल खोलना शुरू किए जिससे यूरोप में साक्षरता दर में जबरदस्त इजाफा हुआ।
· अब शहरों से गांवों की तरफ भी पुस्तक विक्रेता जाने लगे। इंग्लैंड में चेपमेन जो कि सस्ती किताबें पेनी चैपबुक्स बेचने जाते।
· वैज्ञानिक तथ्यों वाली किताबों में न्यूटन के आविष्कार छपते जिससे पाठकों में वैज्ञानिक दृष्टिकोण विकसित होता जबकि टॉमस पेन, वॉल्तेयर और रूसो जैसे दार्शनिकों की किताबों से जनता को उसके अधिकारों का भान कराया।
दुनिया के जालिमों , अब तुम हिलोगे -
· अठारहवीं सदी में फ्रांस के एक उपन्यासकार लुई सेबेस्तिएँ मर्सिए ने कहा की ‘‘ छापाखाना प्रगति का सबसे ताकवर औजार है, इससे बन रही जनमत की आँधी में निरंकुशवाद उड़ जाएगा”।
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मर्सिए के अनुसार किताबों से जो ज्ञानोदय हुआ है उससे निरंकुशवादियों का अंत तय है।
मुद्रण संस्कृति और फ्रांसीसी क्रांति -
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मुद्रण संस्कृति ने ही फ्रांसीसी क्रांति का मार्ग प्रशस्त किया तो यह अतिश्योक्ति न होगी।
· वॉल्तेयर और रूसो जैसे दार्शनिकों के लेखन से जनता को आम जन प्रत्येक परम्परा, अंधविश्वास और निरंकुशवाद को तर्क और विवेक की कसौटी पर परखने का अवसर मिला।
· मुद्रण से वाद विवाद और संवाद की नई संस्कृति का जन्म हुआ। आम जनता अब बहस और मुसाहिबों से पुर्नमूल्यांकन करने लगी। सामाजिक क्रांति के नए विचारों का सूत्रपात हुआ।
· 1780 आते आते राजतंत्र और निरंकुशता का मजाक उड़ाया जाने लगा। कैरिकेचरों (व्यंग्य चित्रों) के साथ राजाओं और कुलीनों की विलासिता तथा सामान्य जन की विपन्नता को दर्शाया गया जिससे राजतंत्र के खिलाफ क्रांति का वातावरण बना।
· दार्शनिकों के लेखन और चर्च के प्रोपेगेंडा लेखन के बीच जनता अपनी संभावनाएं तलाशने लगी।
उन्नीसवीं सदी :-
· उन्नीसवीं सदी में जनता की साक्षरता दर में जबरदस्त उछाल आया।
बच्चे, महिलाएं और मजदूर -
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उन्नीसवीं सदी में बाल साहित्य की रचना की जाने लगी। पाठ्यपुस्तकों का लेखन किया जाने लगा।
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1857 में फ्रांस मे बाल साहित्य के लिए पृथक से छापाखाना डाला गया।
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जर्मनी में ग्रिम बंधुओं ने गांव गांव जाकर लोक कथाओं को एकत्र किया और मुद्रित कराया।
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मुद्रण की प्रक्रिया में अनेक लोकथाओं का स्वरूप भी बदल गया।
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पेनी मैगजीन अर्थात एक पैसे बिक्री वाली पत्रिकाएं महिलाओं की पसंद बनीं।
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जेन ऑस्टिन, ब्राण्ट सिस्टर्स, जार्ज इलियट आदि प्रमुख उपन्यासकार थे।
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17 वीं सदी में लाइब्रेरी की स्थापनाएं हुई और किताबें किराए से मिलने लगीं।
नए तकनीकी परिष्कार -
· सत्रहवीं सदी का जो मुद्रण लकड़ी के ब्लॉक से होती थी अठारहवीं सदी के दोरान छापेखाने में धातु का प्रयोग होने लगा।उन्नीसवीं सदी आते आते मुद्रणालय तकनीकी रूप से और दक्ष हो गए।
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उन्नीसवीं सदी के अंत तक ऑफसेट प्रिटिंग की विधा आ गईं।
· शिलिंग श्रंखला के अंतर्गत इंग्लैंड में 1920 के दशक में लोकप्रिय किताबों को धारावाहिक रूप में प्रकाशित किया गया।
· 1930 में जब मंदी आई तब प्रकाशकों ने सस्ते कागजों का इस्तेमाल किया जिससे पाठको की जेब पर असर न पड़े।
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मेरा
बचपन और मेरे विश्वविद्यालय नमक रचना मैक्सिम गोर्की की हैं।
-: भारत का मुद्रण संसार :-
मुद्रण युग के पूर्व भारत
· भारत में संस्कृत, अरबी, फारसी और विभिन्न क्षेत्रीय भाषाओं में हस्तलिखित पांडुलिपियां लिखे जाने की परम्परा समृद्ध थी।
· पांडुलिपियां नाजुक होने के कारण उनका परिवहन भी आसान नहीं था इन कारणों से वे मंहगी भी पड़ती।
· अंग्रेजों के आने के पूर्व बंगाल के ग्रामीण इलाकों में प्राथमिक स्तर की पाठशालाओं का जाल था किन्तु इनमें गुरू याददाश्त के आधार पर किताबें विद्यार्थियों को सिखाते।
छपाई का भारत आगमन -
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प्रिटिंग प्रेस सबसे पहले पुर्तगाली धर्म प्रचारकों के साथ गोवा के रास्ते भारत आया।
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जेसुइट पुजारियों ने कोंकणी सीखी और कई किताबें मुद्रित कीं।
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कैथोलिक पुजारियों ने 1579 में कोचीन में पहली तमिल किताब छापी।
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जेम्स ऑगस्टस हिक्की ने 1780 में बंगाल गजट नामक एक साप्ताहिक पत्रिका का संपादन शुरू हुआ।
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‘‘ हर किसी के लिए खुली एक व्यावसायिक पत्रिका जो किसी के प्रभाव में नहीं है’’ यह बंगाल गजट का ध्येय वाक्य था।
· जेम्स ऑगस्टस अक्सर अंग्रेजी सरकार के खिलाफ व्यंग्य इत्यादि छाप दिया जिससे तत्कालीन गर्वनर जनरल वॉरेन हेस्टिंग्ज ने उनपर मुकदमा कर दिया।
· राजा राममोहन राय के मित्र गंगाधर भट्टाचार्य ने बंगाल गजट प्रकाशित किया जो पहला भारतीय अखबार था।
धार्मिक सुधार और सार्वजनिक बहसें :-
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समाजसुधारकों ने मुद्रण संस्कृति के द्वारा समाज में नवीन विचारों का संचार आरंभ किया और सती प्रथा, एकेश्वरवाद, ब्राम्हण पुजारी वर्ग तथा मूर्ति पूजा आदि पर नवीन विचार दिए।
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1821 में राजा राममोहन राय ने संवाद कौमुदी का प्रकाशन किया।
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संवाद कौमुदी के रेडिकल विचारों के खिलाफ रूढ़िवादियों ने समाचार चंद्रिका का प्रकाशन किया।
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जाम-ए-जहाँ और शम्सुल अखबार 1882 में प्रकाशित हुए जिनकी भाषा फारसी थी।
मुसलमानों के बीच मुद्रण संस्कृति का असर -
· ईसाई मिशनरियों के बढ़ते प्रभाव और मुद्रण पर उनके दबदबे का असर मुस्लिम उलेमाओं में ज्यादा देखने को मिला।
· उलेमाओं को मुस्लिम राज्य के पतन और ईसाई धर्म प्रचारकों के द्वारा धर्मांतरण करवाने से डरे हुए थे । इससे निपटने सस्ते लिथोग्राफी प्रेस का उपयोग करते हुए अपने धर्मग्रंथों का उर्दु और फारसी अनुवाद कराया और आम मुस्लिमों के बीच लेकर गए।
हिन्दुओं के बीच मुद्रण प्रभाव -
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हिन्दुओं ने भी अपने धार्मिक ग्रंथ मुद्रित कराने आरंभ किए। सबसे पहली मुद्रित हिन्दु किताब तुलसीदास की रामचरित मानस थी। जो 1810 में कलकत्ता से प्रकाशित हुई थी।
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नवल किशोर प्रेस लखनऊ और श्री वेंकटेश्वर प्रेस बम्बई प्रसिद्ध थे।
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मुद्रण से अलग अलग सम्प्रदायों को भी एक दूसरे को जानने और समझने का अवसर मिला।
प्रकाशन के नए रूप :-
· आरंभ में भारतीय यूरोप के साहित्य को पढ़ते थे किन्तु उसकी विषयवस्तु भारतीयों के अनुकूल नहीं होने से भारतीय विषयवस्तु वाले साहित्य की जरूरत हुई और प्रकाशन के नए रूप अस्तित्व में आए।
· अब साहित्य के अंतर्गत गीत, कहानियां, बाल साहित्य, सामाजिक और राजनीतिक तथा धार्मिक कथाओं का प्रकाशन होने लगा।
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शब्दों के मुद्रण के साथ साथ अब चित्रों का भी मुद्रण होने लगा।
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1870 तक राजनीतिक विषयों पर व्यंग्य चित्र और कार्टून छपने लगे।
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राजा रवि वर्मा प्रख्यात चित्रकार थे।
महिलाएं और मुद्रण -
· मुद्रण संस्कृति के विकास के साथ ही महिलाओं की जिंदगी के बारे में लेखन में ईमानदारी और संवेदना के साथ होने लगा।
· हिंदुओं को लगता था कि महिलाओं को पढ़ाने से वे विधवा हो जाएंगी और मुसलमानों को लगता था कि उर्दु की रूमानी किताबें पढ़कर महिलाएं बिगड़ जाएंगी।
· पूर्वी बंगाल की एक महिला रशसुन्दरी देवी ने छुप छुप कर पढ़ना आरंभ किया ओर अपने जीवन पर आधारित आमार जीबन नाम आत्मकथा लिख डाली।
· कैलाशबासिनी देवी ने महिलाओं के अनुभवों को संकलित कर 1860 के दशक में प्रकाशित करना शुरू किया।
· ताराबाई शिंदे और पंडिता रमाबाई ने उच्च जातियों की नारियों की व्यथा को लिखा।
· उर्दु, तमिल, बंगाली और मराठी में मुद्रण पूर्व से विकसित हो गया था जबकि हिंदी की बात करें तो हिंदी में गंभीर मुद्रण 1870 के दशक से हुआ।
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राम चड्ढा ने औरतों को आज्ञाकारी पत्नी बनने के गुर सिखाने वाली पुस्तक स्त्री धर्म विचार लिखी।
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मुद्रण आने के बाद से स्त्रियों के जीवन में सकारात्मक परिवर्तन आने लगे।
गरीब जनता और मुद्रण -
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मद्रास में उन्नीसवीं सदी में छोटी और सस्ती किताबें आने लगी थीं। जो कि चौराहों पर बिकती थीं।
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पुस्तकालय खोलना अमीरों के लिए प्रतिष्ठा की बात होती थी।
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निम्न जातियों के साथ होने वाले भेदभाव को उजागर करने ज्योतिबा फुले ने 1871 में गुलामगीरी लिखी।
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ई. वी. रामास्वामी नायकर को पेरियार के नाम से जाना जाता है।
· कानपुर के मिल मजदूर काशीबाबा ने 1938 में छोटे और बड़े सवाल पुस्तक लिखकर जातीय और वर्गीय शोषण के रिश्ते को दिखाया।
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सच्ची कविताएं नाम का संगह सुदर्शन चक्र के उपनाम से ही एक मिल मजदूर ने लिखी।
· असमिया रचनाकार लक्ष्मीनाथ बेजबरूवा ने बूढ़ी आइर साधु ( दादी मां की कहानियां ) और असम का लोकप्रिय गीत ओ मोर अपुनर देश लिखा।
प्रिंट और प्रतिबंध :-
· आरंभ में जब ईस्ट इंडिया कम्पनी का शासन था तब अंग्रेज लेखक कम्पनी के अफसरों के भ्रष्टाचार और कुप्रशासन पर लिखते तो उन अंग्रेज लेखकों पर प्रतिबंध लगाया जाता।
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कलकत्ता सर्वोच्च न्यायालय ने 1820 में प्रेस की आजादी के लिए आरंभिक नियम बनाए।
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एक अफसर टॉमस मैकॉले ने प्रेस की आजादी बहाल करने पर जोर दिया।
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1857 के बाद जब कम्पनी का शासन खत्म हो गया और ब्रिटिश संसद का शासन आया तो प्रेस और मुद्रण के प्रति सरकार का रवैया बदल गया।
· आइरिश प्रेस कानून की तर्ज पर 1878 में वर्नाकुलर प्रेस एक्ट लागू कर स्थानीय भाषा के अखबारों पर प्रतिबंध लगाया गया।
· पंजाब के क्रांतिकारियों को जब 1907 में कालापानी भेजा गया तो बाल गंगाधर तिलक ने अपने अखबार केसरी में जमकर आलोचना की।
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द फ्रेंड्स ऑफ इंडिया ने प्रेस चलाने के लिए सरकारी मदद लेने से इंकार कर दिया था।
महत्वपूर्ण शब्द
· प्लाटेन - लेटरप्रेस छपाई में प्लाटेन बोर्ड होता है, जिसे कागज के पीछे दबाकर टाइप की छाप ली जाती है। पहले यह बोर्ड काठ का होता था, बाद में स्टील का बनने लगा।
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कम्पोजीटर - छपाई के लिए इबारत कम्पोज करने वाला व्यक्ति।
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गैली - धातुई फ्रेम, जिसमें टाइप बिछाकर इबारत बनाई जाती थी।
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बैलाड - लोक गीत का ऐतिहासिक आख्यान, जिसे गाया या सुनाया जाता है। गाथा गीत कहते हैं।
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टैवर्न - शराबघर, वह जगह जहाँ लोग शराब पीने, खाने, दोस्तों से मिलने और बात विचार के लिए आते हैं।
-: 01 अंक के लिए प्रश्नोत्तर :-
सही विकल्प चुनिए :-
1. मुद्रण तकनीक सबसे पहले कहाँ विकसित हुई ?
(अ) भारत (ब) चीन (स) फ्रांस (द) प्रशा
2. जापान में कब और किसके द्वारा छपाई तकनीक लाई गई ?
(अ) अरब व्यापारियों द्वारा आठवीं सदी में (ब) चीनी बौद्ध धर्मप्रचारकों द्वारा 768-770 ई. में
(स) चीनी रेशम व्यापारियों द्वारा पंद्रहवीं सदी में (द) यूरोपीय कंपनियों द्वारा पन्द्रहवीं सदी में
3. मुद्रण की पहली तकनीक विकसित हुई -
(अ) चीन (ब) जापान (स) कोरिया (द) उपरोक्त सभी
4. खुशनसीवी से तात्पर्य है -
(अ) लेखक (ब) जादूगर (स) चित्रकार (द) नर्तक
5. मुद्रित सामग्री का सबसे बड़ा उत्पादक कौन था -
(अ) चीन (ब) जापान (स) कोरिया (द) इंग्लैंड
6. जापान की सबसे पुरानी किताब -
(अ) डायमंड सूत्र (ब) कोजिको (स) द टेल ऑफ गेंजी (द) इजिकाई
7. जापान में 868 ई. में कौन सी किताब छपी -
(अ) डायमंड सूत्र (ब) कोजिको (स) द टेल ऑफ गेंजी (द) इजिकाई
8. टोक्यो का प्राचीन नाम क्या था?
(अ) एदो (ब) शोगुनेत (स) टोकुगावा (द) क्योटो
9. वुडब्लॉक्स मुद्रण के रूप में बौद्ध धर्म ग्रंथों का कोरियाई संग्रह है -
(अ) डायमंड सूत्र (ब) उकियो (स) द टेल ऑफ गेंजी (द) त्रिपीटका कोरियाना
10. आम शहरी जीवन का चित्रण करने वाली चित्रकला शैली -
(अ) डायमंड सूत्र (ब) उकियो (स) द टेल ऑफ गेंजी (द) त्रिपीटका कोरियाना
11. कितागावा उतामारो का योगदान -
(अ) डायमंड सूत्र (ब) उकियो (स) द टेल ऑफ गेंजी (द) त्रिपीटका कोरियाना
12. वेलम -
(अ) पांडुलिपि (ब) ताम्रपत्र (स) चर्म पत्र (द) वुडब्लॉक
13. 1295 ई. में चीन पहुँचने वाते इतावली यात्री
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(अ) इब्नबतूता (ब) गुटेन्बर्ग (स) मार्कोपोलो (द) हिक्की
14. चीन से इटली मुद्रण कला ले जाने वाला व्यक्ति कौन था?
(अ) इब्नबतूता (ब) गुटेन्बर्ग (स) मार्कोपोलो (द) हिक्की
15. यूनेस्को मेमोरी ऑफ द वर्ल्ड रजिस्टर में दर्ज किताब कौन सी है?
(अ) रामचरित मानस (ब) उकियो (स) जिक्जी (द) त्रिपीटका
16. प्रिंटग प्रेस के आविष्कारक कौन थे?
(अ) जेम्स ऑगस्टस हिक्की (ब) योहान गुटेन्बर्ग
(स) जेम्स हरग्रीव्स
(द) मार्कोपोलो
17. यूरोप में पहली छपी हुई किताब थी -
(अ) बाइबिल (ब) अखलाक-ए-नसीरी
(स) त्रिपीटका
(द) शंघाई प्रिंट
18. छपाई के लिए इबारत को कम्पोज करने वाला व्यक्ति -
(अ) कातिब (ब) प्रूफरीडर (स) कम्पोजीटर (द) मुंशी
19. धातुई फ्रेम, जिसमें टाइप बिछाकर इबारत बनाई जाती है -
(अ) वेलम (ब) प्लाटेन (स) कम्पोजिट (द) गैली
20. लोकगीत का एतिहासिक आख्यान जिसे गा कर सुनाया जाता है -
(अ) ऑपेरा (ब) गाथागीत (स) किस्से (द) रासो
21. मिनर्वा और मर्करी हैं -
(अ) विद्या की देवी और देवदूत (ब) किताब और लेखक
(स) सम्राट और चित्रकार (द) धर्मसुधारक और महिला
22. ‘‘मुद्रण ईश्वर की दी हुई महानतम देन है, सबसे बड़ा तोहफा”। किसने कहा था?
(अ) जेम्स ऑगस्टस हिक्की (ब) मार्टिन लूथर
(स) जे.वी.श्ले
(द) योहान गुटेन्बर्ग
23. मार्टिन लूथर कौन था?
(अ) लेखक (ब) बागी (स) क्रांतिकारी (द) धर्म सुधारक
24. एक किसान ने अपने इलाके में उपलब्ध किताबों को पढ़ना शुरू किया और बाइबिल के नए अर्थ गिनाते हुए ईश्वर और सृष्टि के बारे में नए विचार बनाए जिससे कैथोलिक चर्च नाराज हो गया। वह किसान कौन था?
(अ) इरैस्मस (ब) मार्टिन लूथर (स) जे.वी.श्ले (द) मेनोकियो
25. धर्म के खिलाफ लिखने वालों और उनको सजा देने के लिए गठित संस्था -
(अ) प्रोटेस्टेंट (ब) यंग यूरोप (स) इन्क्वीजीशन (द) सोसायटी
26. किताबों की तुलना भिनभिनाती हुई मक्खियों से करने वाला कौन था?
(अ) इरैस्मस (ब) मार्टिन लूथर (स) जे.वी.श्ले (द) मेनोकियो
27. सम्प्रदाय हैं?
(अ) राष्ट्रवादियों का समूह
(ब) एक विचारधारा
(स) किसी धर्म का एक उप समूह (द) पंचायत
28. पॉकेट के आकार की सस्ती किताबें जिनको आमतौर पर एक फेरीवाला बेचता है। इस फेरीवाले को कहते हैं -
(अ) दुकानदार (ब) लाईब्रेरियन (स) चैपमेन (द) वेंडर
29. बिब्लियोथीक ब्ल्यू है -
(अ) सस्ते कागज पर छपी छोटी किताबें (ब) भूत प्रेत की कहानियां
(स) महंगी किताबें जिनको कुलीन पढ़ते हैं (द) नीले रंग की पुस्तक
30. बिब्लियोथीक ब्ल्यू का संबंध है -
(अ) रूस (ब) जापान (स) फ्रांस (द) स्पेन
31. टॉमस पेन, वॉल्तेयर ओर रूसो हैं -
(अ) धर्मसुधारक (ब) स्वतंत्रता सेनानी (स) दार्शनिक (द) राजा
32. ‘‘छापाखाना प्रगति का सबसे ताकतवर औजार है” । किसने कहा था?
(अ) मार्टिन लूथर ने (ब) इरैस्मस ने
(स) लुई सेबेस्तिएँ मर्सिए ने
(द) महात्मा गांधी ने
33. ..................... ने फ्रांसीसी क्रांति के लिए अनुकूल परिस्थितियां रचीं।
(अ) मुद्रण संस्कृति ने (ब) लोक गीतों ने (स) फिल्मों ने
(द) नाटकों ने
34. किस देश में बच्चों की किताबों को मुद्रित करने के लिए अलग से छापाखाना डाला गया?
(अ) फ्रांस (ब) रूस (स) ब्रिटेन (द) जापान
35. जेन ऑस्टिन, ब्रॉण्ट बहनें, जॉर्ज इलियट आदि हैं ।
(अ) राजकुमारियां (ब) महिला लेखिकाएं (स) लूथर के अनुयायी (द) बौद्ध धर्मप्रचारक
36. पेनी मैगजीन -
(अ) एक पैसे कीमत की पत्रिका (ब) दर्द निवारक गोली (स) एक मोटी किताब (द) सामान्य ज्ञान की पुस्तक
37. मेरा बचपन और मेरे विश्वविद्यालय के लेखक हैं -
(अ) थॉमस वुड (ब) मैक्सिम गोर्की (स) रॉबर्ट डार्नटन (द) जेम्स लॉकिंग्टन
38. गीत गोविंद के रचनाकार हैं -
(अ) जयदेव (ब) सूरदास (स) रसखान (द) गोविंद नारायण
39. भारत में प्रिंटग प्रेस के जनक हैं -
(अ) राजा राममोहन राय (ब) द्वारकानाथ टैगोर (स) जेम्स ऑगस्टस हिक्की (द) विलियम बोल्ट
40. गुलामगीरी जिसमें जातिप्रथा के अत्याचारों का वर्णन है किसने लिखी?
(अ) लक्ष्मीनाथ बेजबरूवा
(ब) मोहनदास करमचंद गांधी
(स) ज्योति बा फुले (द) मुहम्मद अली
41. इस्लामिक कानूनों का जानकार और विद्वान -
(अ) हाजी (ब) खलीफा (स) इमाम (द) उलेमा
42. भारत में सबसे पहले किस भाषा में किताबें छपीं?
(अ) हिन्दी (ब) तमिल (स) संस्कृत (द) कोंकणी
43. फारसी में प्रकाषित अखबार हैं-
(अ) जाम-ए-जहाँ (ब) शम्सुल अखबार (स) अ और ब दोनों (द) केवल ब
44. गुटेन्बर्ग द्वारा मुद्रित बाइबिल की प्रमुख विशेषता नहीं है-
(अ) गुटेन्बर्ग ने कुल 180 प्रतियां छापी थीं। (ब) बाइबिल की कोई भी दो प्रति एक जैसी नहीं थीं।
(स) हर पन्ने पर अक्षरों के अंदर रंग हाथ से भरे जाते थे।(द) सभी प्रतियां एक दूसरे की हूबहू नकल होती थीं।
सत्य और असत्य लिखिए
1. गुटेन्बर्ग के पिता एक शिक्षक थे।
2. मार्टिन लूथर और इरैस्मस दोनों धर्म सुधारक थे।
3. इरैस्मस प्रिटिंग का घोर समर्थक था।
4. मार्टिन लूथर प्रिटिंग का घोर समर्थक था।
5. द मैकबर डांस में मुद्रण को दुनिया के अंत का प्रतीक बताया गया है।
6. एकोर्डियन शैली की पुस्तके वर्तमान फ्लिप बुक की तरह होती थी।
7. दीवान शायर हाफिज की रचना है।
उत्तर
बहुविकल्पीय प्रश्नों के उत्तर सत्य/असत्य
1 (ब) 12 (स) 23 (द) 34 (अ) 1 असत्य
2 (ब) 13 (स) 24 (द) 35 (ब) 2 सत्य
3 (द) 14 (स) 25 (स) 36 (अ) 3 असत्य
4 (अ) 15 (स) 26 (अ) 37 (ब) 4 सत्य
5 (अ) 16 (ब) 27 (स) 38 (अ) 5 सत्य
6 (अ) 17 (अ) 28 (स) 39 (स) 6 सत्य
7 (अ) 18 (स) 29 (अ) 40 (स) 7 सत्य
8 (अ) 19 (द) 30 (स) 41 (द)
9 (द) 20 (ब) 31 (स) 42 (द)
10 (ब) 21 (अ) 32 (स) 43 (स)
11 (ब) 22 (ब) 33 (अ) 44 (द)
02 अंक हेतु महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तर
अ. निम्नलिखित के कारण दें
-
क. वुडब्लॉक प्रिंट या तख्ती की छपाई यूरोप में 1295 के बाद आई।
उत्तर - 1295 ई. में इटली के वेनिस शहर का निवासी मार्को पोलो नामक खोजी गई यात्री चीन में काफी समय तक खोज करने के बाद इटली लौटा। चीन के पास वुडब्लॉक प्रिंट या तख्ती की छपाई की तकनीक पहले से प्रचलित थी। मार्को पोलो ने यह जानकारी यूरोप वासियों को दी।
ख. मार्टिन लूथर मुद्रण के पक्ष में था और उसने इसकी खुलेआम प्रशंसा की।
उत्तर - हां, मार्टिन लूथर मुद्रण के पक्ष में था और वह उसकी खुलेआम प्रशंसा करता था। क्योंकि उसने अपने प्रोटेस्टेंट विचारों के प्रकाशन से मार्टिन लूथर ने रोमन कैथोलिक चर्च की कुरीतियों की आलोचना की तथा उन्हें चुनौती दी। जब उसने न्यू टेस्टामेंट का अनुवाद किया तो कुछ ही दिनों में उसकी 5000 प्रतियां बिक गई और तीन महीने के अंदर दूसरा संस्करण निकालना पड़ा। इसलिए यह प्रिंट तकनीक के पक्ष में था और इसकी सार्वजनिक रूप से प्रशंसा करता था।
ग. रोमन कैथलिक चर्च ने सोलहवीं सदी के मध्य से प्रतिबंधित किताबों की सूची रखनी शुरू कर दी।
उत्तर - रोमन कैथलिक चर्च ने सोलहवीं सदी के मध्य से प्रतिबंधित किताबों की सूची रखनी शुरू कर दी थी क्योंकि 16वीं शताब्दी के मध्य से रोमन कैथोलिक चर्च को अनेकों मतभेदों का सामना करना पड़ा। लोगों ने ईश्वर और उसकी रचना के बारे में अपने पसंद की व्याख्या की। इसलिए चर्च ने ऐसी पुस्तकों पर रोक लगा दी और 1558 ई. से उसकी सूची रखने लगे।
घ. महात्मा गांधी ने कहा कि स्वराज की लड़ाई दरअसल अभिव्यक्ति, प्रेस और सामूहिकता के लिए लड़ाई है।
उत्तर - गांधी जी के अनुसार, भाषण की स्वतंत्रता, बोलने की स्वतंत्रता, प्रेस तथा संगठन आदि बनाने की आजादी, जनता के विचारों को परिष्कृत करने के सबसे शक्तिशाली संदेशवाहक है। अतः उन्होंने कहा कि स्वराज की लड़ाई, विचार अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, प्रेस और संगठन आदि बनाने की लड़ाई थी।
ब. छोटी टिप्पणी में इनके बारे में बताएंः-
क. गुटेन्बर्ग प्रेस
उत्तर - यह जैतून प्रेस का एक मॉडल था। गुटेन्बर्ग के पिता व्यापारी थे, वह खेती की एक बड़ी रियासत में पल - बढ़ कर बड़ा हुआ। वह बचपन से ही तेल और जैतून पेरने की मशीनें देखता हुआ आया था। बाद में उसने पत्थर पर पॉलिश करने की कला को सीखा, फिर सुनारी और अंत में उसने शीशे को इच्छित आकृतियों को गढ़ने में महारत हासिल कर ली। अपने ज्ञान और अनुभव का इस्तेमाल उसने अपने नए आविष्कार में किया।
जैतून प्रेस ही प्रिंटिंग प्रेस का मॉडल या आदर्श बना, और सांचे का उपयोग अक्षरों की धातुई आकृतियो को गढ़ने के लिए किया गया। गुटेन्बर्ग ने 1448 तक अपना यह यंत्र मुकम्मल कर लिया था। उसने जो पहली किताब छापी, वह पुस्तक बाईबिल थी। 3 वर्ष में उसने इसकी 180 प्रतियां छापी।
ख. छपी किताब को लेकर इरैस्मस के विचार
उत्तर - लातिन के विद्वान और कैथोलिक धर्म सुधारक प्रिंट को लेकर बहुत आशंकित था। उसने कैथोलिक चर्च की कमियों का उल्लेख किया और मार्टिन लूथर से भी दूर रहा। उसने एडेजेज (1508) में लिखा - “किताबें भिन-भिनाती मक्खियां है जो दुनिया के प्रत्येक कोने में पहुंच जाती है। हो सकता है कहीं-कहीं एकाध जानने योग्य बातें भी बताएं, लेकिन इनका अधिकतर हिस्सा विद्वानों के लिए हानिकारक ही हैं। ये बेकार ढेर है, क्योंकि अच्छी चीजों की भी अति हानिकारक होती है। इनसे बचना चाहिए क्योंकि मुद्रण दुनिया को तुच्छ (जैसे कि मेरी लिखी) चीजों से ही नहीं पाट रहे, बल्कि बकवास, बेवकूफ, सनसनीखेज, धर्म विरोधी, अज्ञानी और षड्यंत्रकारी किताबें छापते हैं, और उनकी तादाद ऐसी है कि मूल्यवान साहित्यकार मूल्य ही नहीं रह जाता। ”
ग. वर्नाक्युलर या देसी प्रेस एक्ट
उत्तर -
1. यह एक्ट आयरिश प्रेस कानून की तरह ही बनाया गया था।
2. इससे सरकार को भाषाई प्रेस में छपी रपट और संपादकीय को सैसर करने का पूरा अधिकार मिल जाता है।
3. यदि किसी रपट को गलत कह दिया जाता था तो अखबार को पहले ही चेतावनी दे दी जाती थी और यदि इस चेतावनी की ओर ध्यान नहीं दिया जाता था तो अखबार को जब्त कर लिया जाता था और छपाई मशीनें भी छीन ली जाती थी।
4. वर्नाक्युलर प्रेस एक्ट को 1878 में पारित किया गया था।
प्र०3. उन्नीसवीं सदी में भारत में मुद्रण - संस्कृति के प्रसार का इनके लिए क्या मतलब था।
क. महिलाएं ख. गरीब जनता ग. सुधारक
उत्तर - 19वीं सदी में भारत में मुद्रण संस्कृति के प्रसार ने लगभग सभी क्षेत्रों में बदलाव किए। जैसेः- महिलाएं, गरीब जनता और समाज सुधारक कोई भी इन बदलावों से अछूता नहीं रहा था।
क. महिलाएंः- 19वीं शताब्दी में भारत में फैली मुद्रण संस्कृति का भारतीय महिलाओं को भी लाभ पहुंचा। उदारवादी परिवारों ने महिलाओं की शिक्षा का समर्थन किया, वही रूढ़िवादी परिवारों ने इसका विरोध किया।
अधिकतर बागी महिलाओं ने चोरी छिपे पढ़ना आरंभ कर दिया। बाद में अपनी जीवन गाथा को आत्मकथाओं के रूप में लिखा और उन्हें प्रकाशित करवाया। जैसे रश सुंदरी देवी द्वारा रचित ‘ आमार जीवन ’।
महिलाओं में आत्मविश्वास की भावना भरने में मुद्रण संस्कृति ने महत्वपूर्ण योगदान दिया। महिलाओं के जीवन और संवेदनाओं पर कई लेखकों ने लेख लिखना शुरू किया। इसके कारण मध्य वर्ग की महिलाओं में पढ़ने की प्रवृत्ति तेजी से बढ़ी। किसी के पति ऐसे भी होते थे जो महिलाओं पर जोर देते थे। कुछ महिलाओं ने तो घर पर ही शिक्षा ग्रहण की तथा कुछ महिलाएं शिक्षा ग्रहण करने के लिए स्कूल भी जाना आरंभ कर दिया।
ख. गरीब जनताः- गरीब लोगों ने अंबेडकर और पेरियार को पढ़ा और उनके विचारों से अवगत हुए। गरीब लोगों के जीवन की व्यथा कथा को 19 वी सदी के दौरान कई उपन्यासों को दर्शाया गया। सस्ती पुस्तकों के प्रकाशन से गरीब पाठकों की संख्या में वृद्धि हुई। जो लोग वुडब्लॉक बनाते थे, उन्हें छापेखाने में नौकरी मिलने लगी।
मद्रास के शहरों में 19वीं सदी में सस्ती और छोटी किताबे आ चुकी थी। इन सभी किताबों को चौराहे पर बेचा जाता था ताकि गरीब लोग भी इस पुस्तक को खरीद सके और पढ़ सके। बीसवीं सदी के शुरुआत से सार्वजनिक पुस्तकालयों की स्थापना हुई जिसके कारण लोगों तक किताबों की पहुंच बढ़ने लगी।
कई अमीर लोग अपने क्षेत्र में अपनी प्रतिष्ठा बढ़ाने के उद्देश्य से पुस्तकालय बनाने लगे। इससे गरीब लोग भी पुस्तकें पढ़ने लगे और बदलती दुनिया के बारे में जाने लगे। इन सभी से इतना फायदा हुआ कि मजदूरों ने भी किताबें को लिखना आरंभ कर दिया था।
ग. सुधारकः- 19वीं शताब्दी के भारतीय सुधारकों ने अपने विचारों के प्रसार हेतु मुद्रण संस्कृति को एक सबसे कारगर माध्यम के रूप में प्रयोग किया। उन्होंने कई देशी भाषाओं, अंग्रेजी और हिंदी के अखबारों का प्रकाशन आरंभ किया जिनके माध्यम से सती प्रथा, बाल विवाह, एकेश्वरवाद मूर्ति पूजा आदि कुरीतियों के विरोध का आह्वान किया। मुद्रण संस्कृति ने उन्हें धार्मिक अंधविश्वासों को तोड़ने और आधुनिक, सामाजिक और राजनीतिक विचारों के प्रचार - प्रचार का माध्यम बनाया।
प्रिंट ने समाज सुधारकों का काम आसान कर दिया था। उनके नए विचार अब आसानी से जन मानस तक पहुंच जाते थे। पुरानी मान्यताओं पर अब खुलकर बहस करते थे। इससे समाज को काफी फायदा हुआ।
5. पांडुलिपियां क्या थीं?
उत्तर :- पांडुलिपि उस दस्तावेज को कहा जाता था जिसे हाथ से एक व्यक्ति या अनेक व्यक्तियों द्वारा लिखा जाता था। यह लेखन कार्य ताड़पत्र, ताम्रपत्र, स्वर्ण पत्र और चर्मपत्र पर होता था।
6. पांडुलिपियों का प्रचार सीमित क्यों रहा?
उत्तर :- एक हस्तलिखित किताब की पांडुलिपि के रूप में प्रतिलिपियां तैयार करना बहुत ही खर्चीला, ज्यादा समय और श्रम भी लगता था साथ ही पांडुलिपियां अत्यंत नाजुक होती थी जिनका परिवहन उन्हें नष्ट कर सकता था। अतः पांडुलिपियां का प्रचार सीमित ही रहा।
7. गुटेन्बर्ग की छपी पुस्तक बाइबिल की दो विsheषताएं लिखिए।
उत्तर :- गुटेन्बर्ग की छपी पुस्तक बाइबिल की दो विशेषताएं :-
1. बाइबिल की सभी प्रतियां भिन्न होती थी।
2. बाइबिल के प्रत्येक पन्ने के अक्षरों को रंगीन किया जाता था।
8. पंचांग किसे कहते है?
उत्तर :- चाँद, सूरज की गति, ज्वार - भाटा के समय और लोगों के दैनिक जीवन से जुड़ी कई अहम जानकारियां देता वार्षिक प्रकाशन पंचांग कहलाता है।
9. चैपबुक (गुटका) से क्या आशय है?
उत्तर :- चैपबुक पॉकेट बुक के आकार की किताबों को कहा जाता है। इन्हें आमतौर पर फेरीवाले बेचते थे। जिनको चैपमेन कहते थे।
10. त्रिपीटका कोरियाना क्या है?
उत्तर :- तेरहवीं सदी के मध्य में कोरिया में वुडब्लॉक मुद्रण के रूप में बौद्ध धर्म ग्रंथों को मुद्रित किया गया जिनको त्रिपीटका कोरियाना नाम से जाना गया।
11. उलेमा और फतवा से क्या आशय है?
उत्तर :- इस्लामिक कानून और शरिया के जानकार को उलेमा कहा जाता है।
किसी अनिश्चय अथवा असमंजस की स्थिति में इस्लामिक कानूनों के जानकार व्यक्ति के द्वारा की गई वैधानिक घोषणा को फतवा कहा जाता है।
12. राजा ऋतुध्वज द्वारा असुरों से राजकुमारी मदलसा को बचाने का चित्रण किसने किया है?
उत्तर :- राजा रवि वर्मा
13. इंडियन शारिवारी क्या था?
उत्तर :- इंडियन शारिवारी उन्नीसवीं सदी के अंत में प्रकाशित होने वाले व्यंग्य और विद्रूप विधा के कई पत्रों में से एक था।
14. धर्म के नाम पर महिलाओं और पुरूषों में भेदभाव का विरोध करने वाली महिला कौन थी?
उत्तर :- रोकैया शेखावत हुसैन
03 और 04 अंक हेतु महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तर
1. अठारहवीं सदी के यूरोप में कुछ लोगों को क्यों ऐसा लगता था कि मुद्रण संस्कृति से निरंकुशवाद का अंत और ज्ञानोदय होगा।
उत्तर- अठारहवी सदी के मध्य तक लोगों का यह विश्वास बन चुका था कि मुद्रण संस्कृति से निरंकुशवाद का अंत होगा तथा ज्ञान से प्रसार होगा। इसके पीछे निम्नलिखित कारण थे -
(अ) अधिक संख्या में पुस्तकें पुस्तकें समाज के सभी वर्गों तक पहुँच गई।
(ब) पुस्तकें सस्ती भी होती गईं। अतः अब गरीब लोग भी इन्हे खरीद सकते थे।
(स) नए-नए विषयों पर पुस्तकें बाज़ार में आने से लोगों की पुस्तकों में रुचि बढ़ती गई। अतः बहुत-से लोग पुस्तकों के नियमित पाठक बन गए। ये सभी बातें ज्ञान के उदय तथा प्रसार की ही सूचक थीं।
(द) पुस्तकों में चर्च तथा राजशाही को निरंकुश सत्ता की आलोचना की जाने लगी। अतः बहुत से लोग यह मानने लगे कि पुस्तकें समाज को निरंकुशवाद तथा आतंकी राजसत्ता से मुक्ति दिला कर ऐसा वातावरण तैयार करेंगी जिसमें विवेक ओर बुद्धि का राज़ होगा। तत्कातीन फ्रांस के एक उपन्यासकार लुई सेबास्तिये मर्सिये ने यह घोषणा की थी “छापाखाना प्रगति का सबसे शक्तिशाली औज़ार है, इससे बन रही जनमत की आँधी में निरंकुशवाद उड़ जाएगा।’
मर्सिये ज्ञानोदय को लाने तथा निरंकुशवाद को उखाड़ फेंकने में छापेखाने (मुद्रण) की भूमिका के प्रति इतना आश्वस्त था कि उसने निरंकुशवादी शासकों को बहुत बड़ी चुनौती दे डाली। उसने कहा ‘‘ हे निरंकुशवादी शासकों, अब तुम्हारा काँपने का वक्त आ गया है। आभासी लेखक की कलम की ताकत के आगे तुम हिल उठोगे।
2. कुछ लोग किताबों की सुलभता को लेकर चिंतित क्यों थे? यूरोप और भारत से एक- एक उदाहरण लेकर समझाएं।
उत्तर - इसमें कोई संदेह नहीं कि मुद्रण तकनीक के आविष्कार से किताबों की पहुँच दिन-प्रतिदिन सुलभ होती गई। इससे ज्ञान का प्रसार हुआ और तर्क को बढ़ावा मिला। परंतु कुछ लोग ऐसे भी थे जो किताबों के सुलभ हो जाने से चिंतित थे। जिन लोगों ने छपी हुई किताबों का स्वागत किया, उनके मन में भी कई प्रकार की शंकाएँ थीं। चिंतित लोगों मं मुख्य रूप से धर्मगुरु, सम्राट तथा कुछ लेखक शामिल थे। वे समझ नहीं पा रहे थे कि छपे हुए शब्दों का लोगों के दिलो-दिमाग पर क्या प्रभाव पड़ेगा। उनका मानना था कि यदि पुस्तकों पर कोई नियंत्रण नहीं होगा तो लोग अधर्मी ओर विद्रोही बन जाएंगे। ऐसे में मूल्यवान साहित्य की सत्ता ही नष्ट हो जाएगी।
यूरोप से उदाहरणः यूरोप में केथोलिक चर्च लोगो में चर्च विरोधी भावनाओं के पनपने से बहुत अधिक चिंतित था। उसे अपनी सत्ता ख़तरे में दिखाई देने लगी थी। यही कारण था कि उसने मेनोकियो नामक एक गरीब किसान को चर्च विरोधी विचार व्यक्त करने पर मृत्यु दंड दे दिया था। प्रसिद्ध वैज्ञानिक गेलीलियो पर भी इसी कारण एक मुकदमा चलाया गया था।
भारत का उदाहरणः भारत की अंग्रेज़ी सरकार मुद्रण संस्कृति के प्रसार से चिंतित थी क्योंकि इससे लोगों में राष्ट्रवादी भावनाएँ मज़बूत होती जा रही थीं। उदाहरण के लिए 1907 में जब पंजाब के क्रांतिकारियों को कालापानी भेजा गया तो बालगंगाधर तिलक अपने केसरी नामक पत्र में उनके प्रति गहरी सहानुभूति दिखाई। परिणामस्वरूप 1908 में उन्हें कैद कर लिया गया।
प्रश्न 3. उन्नीसवी सदी में भारत में गरीब जनता पर मुद्रण संस्कृति का क्या असर हुआ?
उत्तर - मुद्रण संस्कृति से देश की गरीब जनता तथा मजदूर वर्ग को लाभ पहुँचा। पुस्तकें चौराहों पर बिकने लगी थीं। गरीब मज़दूर इन्हें आसानी से खरीद सकते थे। बीसवी शताब्दी में सार्वजनिक पुस्तकालय भी खुलने लगे जिससे पुस्तकों की पहुँच और भी व्यापक हो गई। बंगलौर के सूती मिल मज़दूरों ने स्वयं को शिक्षित करने के उद्देश्य से अपने पुस्तकालय स्थापित किए। इसकी प्रेरणा उन्हें बंबई के मिल-मज़दूरों से मिली थी। कुछ सुधारवादी लेखकों की पुस्तकों ने मज़दूरों जातीय भेदभाव के विरुद्ध संगठित किया। इन लेखकों ने मजदूरों के बीच साक्षरता लाने, नशाखोरी को कम करने तथा अन्याय के विरुद्ध आवाज उठाने के भरसक प्रयास किए। इसके अतिरिक्त उन्होंने मज़दूरों तक राष्ट्रवाद का संदेश भी पहुँचाया। मज़दूरों का हित साधने वाले लेखकों में ज्योतिबा फुले, भीमराव अंबेडकर, ई० वी० रामास्वामी नायकर तथा काशीबाबा के नाम लिये जा सकते हैं। काशीबाबा कानपुर के एक मिल मजदूर थे। उन्होंने 1938 में छोटे और बड़े सवाल छापकर छपवा कर जातीय तथा वर्गीय शोषण के बीच का रिश्ता समझाने का प्रयास किया। बंगलोर के सूती मिल मजदूरों ने स्वयं को शिक्षित तथा जागरूक करने के लिए पुस्तकालय बनाए। अनेक समाज सुधारकों ने भी कोशिश की कि मज़दूरों के बीच नशाखोरी कम हो तथा साक्षरता दर बढ़े।
4.
मुद्रण संस्कृति ने भारत मे राष्ट्रवाद के विकास में क्या मदद की ?
उत्तर - मुद्रण संस्कृति ने भारत में राष्ट्रवाद के विकास में बहुत ही महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
(क) अंग्रेज़ी काल में भारतीय लेखकों ने अनेक ऐसी पुस्तकों की रचना की जो राष्ट्रीय भावनाओं से ओत-प्रोत थी।
(ख) बंकिंमचंद्र चटर्जी के उपन्यास “आनंदमठ” ने लोगो मे देश-प्रेम की भावना का संचार किया। वंदे-मातरम गीत भारत के कोने-कोने में गूँजने लगा।
(ग) भारतीय समाचार राष्ट्रीय आंदोलन के लिए उचित वातावरण तैयार किया।
(घ) अमृत बाज़ार पत्रिका, केसरी, मराठा, हिंदू तथा बाँवे समाचार आदि समाचार पत्रों में छपने वाले लेख राष्ट्र प्रेम से ओत-प्रोत होते थे। इन लेखों ने भारतीयों के मन में राष्ट्रीयता की ज्योति जलायी।
(ड) इसके अतिरिक्त भारतीय समाचार पत्र अंग्रेज़ी सरकार की ग्रलत नीतियों को जनता के सामने रखते थे और उनकी खुल कर आलोचना करते थे। समाचार पत्रों के माध्यम से ही लोगों को पता चला कि अंग्रेजी सरकार किस प्रकार बाँटो तथा राज करो की नीति का अनुसरण कर रही है। उन्हें भारत से होने वाले धन की निकासी की जानकारी भी समाचार प्रो ने ही दी। इस प्रकार समाचार पत्रों ने उनके मन में राष्ट्रीय के बीज बोये। अतः स्पष्ट है कि मुद्रण संस्कृति ने भारत में राष्ट्रवाद को मुखर किया।
अभ्यास हेतु अन्य महत्वपूर्ण प्रश्न
प्रश्न 1. कुछ इतिहासकार ऐसा क्यों मानते हैं कि मुद्रण संस्कृति ने फ्रांसीसी क्रांति के लिए ज़मीन तैयार की ?
प्रश्न 2. कल्पना कीजिए आप मार्क पोलो हैं। चीन में आपने प्रिंट का कैसा संसार देखा, यह बताते हुए एक चिट्ठी लिखें।
प्रश्न 3. मान लीजिए आप नव-मुद्रित सस्ती किताबों का इश्तेहार देना चाहते हैं। अपनी दुकान के बाहर लगाने के लिए एक पोस्टर बनाएँ ।
प्रश्न 4. मान लीजिए कि आप क्रांति पूर्व फ्रांस में एक कार्टूनिस्ट या व्यंग्य-चित्रकार हैं। किसी परचे के लिए एक कार्टून बनाएँ।
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